Fundraising September 15, 2024 – October 1, 2024 About fundraising

Karn Tum Kaha Ho (Hindi)

Karn Tum Kaha Ho (Hindi)

Bhattacharya, Pralay
0 / 5.0
0 comments
How much do you like this book?
What’s the quality of the file?
Download the book for quality assessment
What’s the quality of the downloaded files?

कुछ मानवीय संवेग है, जो देशकाल की परिधि से हटकर अनादिकाल से एक अनबूझी पहेली है। इनसान पहले प्राकृतिक और फिर उस पर लागू हुआ है सामाजिक संबंधों का अनुबंध। जब-जब मनुष्य, विशेषकर नारी, प्राकृतिक और स्वाभाविक हुई, तब-तब अनुबंध का न्याय अन्याय बनकर उसके सामने अचलायतन हुआ है। स्वाभाविक और प्रकृति जब-जब मुखर हुई है, अप्राकृतिक विधिनिषेधों ने उसके सामने गति अवरोधक की भूमिका निभाई है। पितृतांत्रिक समाज ने नारी से आनुगत्य की कामना की है और वैसा करते समय हर देश का पुरुष यह भूला है कि नारी प्राथमिक रूप से माँ है, बाद में पत्नी है। जीवन की इन पहेलियों को सुलझाने का या एक संगत उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास है यह उपन्यासकर्ण तुम कहाँ हो। बिंबों के माध्यम से उन संवेदनशील तारों को छूने का एक प्रयास है, जिनके सुर से हमें लगाव है, लेकिन जिन्हें हम सुनना नहीं चाहते

Year:
2015
Publisher:
Prabhat Prakashan
Language:
hindi
File:
EPUB, 737 KB
IPFS:
CID , CID Blake2b
hindi, 2015
Read Online
Conversion to is in progress
Conversion to is failed

Most frequently terms